मध्य प्रदेश में सिंचाई परियोजनाओं का विकास
मध्य प्रदेश, जो कृषि प्रधान राज्य के रूप में जाना जाता है, में सिंचाई परियोजनाओं का इतिहास समृद्ध और प्रेरणादायक रहा है। राज्य में सिंचाई सुविधाओं के विकास ने न केवल कृषि उत्पादन को बढ़ाया, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त किया है।
शुरुआत: पगारा बाँध का निर्माण (1927)
मध्य प्रदेश की सिंचाई परियोजनाओं का प्रथम उल्लेखनीय प्रयास वर्ष 1927 में मुरैना जिले में हुआ, जहाँ पगारा बाँध का निर्माण किया गया। यह बाँध प्रदेश में सिंचाई की दिशा में उठाया गया पहला बड़ा कदम था, जिसने आने वाले दशकों के लिए आधार तैयार किया।
अन्य प्रारंभिक प्रयास
पगारा बाँध के बाद सिंचाई कार्यों में गति आई और क्रमशः विभिन्न जिलों में जलसंचयन एवं सिंचाई टैंकों का निर्माण होने लगा।
- वर्ष 1933 में रायसेन जिले में पलकमती सिंचाई टैंक का निर्माण किया गया, जिसने स्थानीय किसानों को जल उपलब्धता में सहायता दी।
- वर्ष 1936 में बालाघाट जिले के मुरुम नाला क्षेत्र में सिंचाई टैंक बनाया गया, जो क्षेत्रीय कृषि के लिए उपयोगी साबित हुआ।
1940-44: बहुस्तरीय सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण
वर्ष 1940 से 1944 के बीच मध्य प्रदेश में सिंचाई परियोजनाओं को व्यापक रूप मिला। इस अवधि में कई महत्वपूर्ण बाँधों और जल परियोजनाओं का निर्माण हुआ:
- शाक-आसन परियोजना
- काकेतो बाँध
- हारशी बाँध
- तिघरा बाँध
इन परियोजनाओं ने न केवल जल संग्रहण को सुनिश्चित किया, बल्कि वर्षा आधारित कृषि पर निर्भरता को भी कम किया। तिघरा बाँध जैसे जलाशयों ने ग्वालियर सहित आसपास के क्षेत्रों में पीने और सिंचाई के लिए स्थायी जल स्रोत उपलब्ध कराए।
मध्य प्रदेश में सिंचाई परियोजनाओं का विकास न केवल तकनीकी प्रगति का प्रमाण है, बल्कि यह दर्शाता है कि किस प्रकार योजनाबद्ध जल प्रबंधन से कृषि और ग्रामीण जीवन को मजबूती दी जा सकती है। पगारा बाँध से लेकर शाक-आसन परियोजना तक की यात्रा राज्य की जल संसाधन नीति की दूरदर्शिता का परिचायक है।
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