नागवंश: मध्य प्रदेश का प्राचीन शासक वंश
इस लेख में मध्य प्रदेश के प्राचीन नागवंश के उत्थान और उसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला गया है। कुषाणों के पतन के बाद नागवंश ने विदिशा में अपनी स्थापना की और इसकी शाखाएँ पद्मावती (ग्वालियर) और मथुरा तक फैलीं। यह लेख नागवंश की प्रशासनिक व्यवस्था, आर्थिक विकास और ऐतिहासिक योगदान को संक्षेप में प्रस्तुत करता है, जिससे मध्य प्रदेश के प्राचीन इतिहास को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।
कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद नागवंश के शासकों का उदय हुआ, जिन्होंने मध्य भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित किया। इस वंश की स्थापना विदिशा में हुई थी, जहाँ से इसकी शाखाएँ पद्मावती (वर्तमान ग्वालियर क्षेत्र) और मथुरा तक फैलीं।
नागवंश का प्रभाव और पुरातात्विक प्रमाण
- नागवंश के शासकों ने विदिशा और आसपास के क्षेत्रों में अपनी सत्ता मजबूत की।
- बेसनगर से नागवंशीय शासकों के तांबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं, जो उनके आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियों के प्रमाण देते हैं।
- पद्मावती (ग्वालियर क्षेत्र) से नागवंशीय शासक गणपति और भीम के सिक्के भी मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि इस वंश के राजाओं का सिक्का चलता था और वे सशक्त शासक थे।
नागवंश का ऐतिहासिक महत्व
नागवंश मध्य भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा। इस वंश के शासकों ने क्षेत्रीय एकता बनाए रखने और प्रशासन को संगठित रूप देने में अहम भूमिका निभाई।
नागवंश ने मध्य प्रदेश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके शासकों की उपलब्धियाँ और उनके शासनकाल में जारी किए गए सिक्के इस वंश की समृद्धि और प्रशासनिक कुशलता को दर्शाते हैं।
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