निमाड़ में फारूकी शासन
15-16वीं शताब्दी में वर्तमान मध्य प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र खानदेश के फारूकी राजवंश के अधिकार क्षेत्र में रहा। यह क्षेत्र ताप्ती नदी के तट पर स्थित था, जिसका संस्थापक मलिक रजा था। उस समय असीरगढ़ पर आसा अहीर नामक राजा शासन करता था। जिसने मलिक रजा का स्वामित्व स्वीकार कर लिया था।
1398 ई. में मलिक रजा ने दिल्ली सल्तनत से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया और अपने पुत्र नासिर का विवाह मालवा के प्रथम गोरी शासक दिलावर खान की पुत्री के साथ किया। उस समय असीरगढ़ किले को दक्कन के रास्ते का पहरुआ (पहरेदार) अर्थात् दक्षिण का प्रवेश द्वार माना जाता था। मलिक रजा की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मलिक नासिर गद्दी पर बैठा और असीरगढ़ को अपना मुख्यालय बनाया। अपने धर्मगुरू संत जैनुद्दीन की सलाह पर उसने ताप्ती नदी के दोनों तटों पर जैनाबाद और बुरहानपुर की स्थापना की।
- नासिर खान के पश्चात् उसका पुत्र मीरन आदिल खान 1437-41 ई. तक सत्तासीन रहा। संभवतः 1441 ई. में उसकी हत्या कर दी गई थी। तत्पश्चात् उसका पुत्र मीरन मुबारक खान गद्दी पर बैठा। उसने सोलह वर्षों तक शांतिपूर्ण शासन किया।
 - मीरन मुबारक खान की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र आदिल खान द्वितीय 1457-1503 ई. तक शासन किया। आदिल खान द्वितीय ने अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार-गोंडवाना के गढ़माला तथा झारखण्ड तक शासन किया तथा शाह-ए-झारखण्ड की उपाधि धारण की। उसने गुजरात को कर देना बन्द करके स्वयं को स्वतंत्र घोषित किया।
 - उसके संरक्षण में राज्य में उत्तम वस्त्रों के निर्माण में, व्यापार तथा कृषि में विस्तार हुआ। 1503 ई. में खानदेश के इस सफल शासक की मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् इस वंश के शासक क्रमशः दाउद खाँ, गजनी खाँ, आदिल खाँ तृतीय, मीर मुहम्मद शाह तथा मुबारक खाँ द्वितीय हुए।
 
1576 ई. में रजा अली खाँ या आदिल शाह गद्दी पर बैठा। रजा अली खाँ ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर के पुत्र शहजादा मुराद के साथ किया तथा अपना विवाह अबुल फजल की बहन के साथ किया। रजा अली खाँ ने असीरगढ़ के किले में 1588 ई. में जामा मस्जिद तथा 1589 ई. में तीन तोपों का निर्माण करवाया।
1596 ई. में एक बारूदखाने में अचानक विस्फोट होने से उसकी मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् उसका पुत्र बहादुर खाँ उर्फ खिज्र खाँ उत्तराधिकारी बना और स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। 1601 ई. में अकबर ने बुरहानपुर नगर पर आक्रमण किया और असीरगढ़ के किले में अधिकार कर लिया।
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