ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic Period)
ताम्रपाषाण काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसमें मनुष्यों ने तांबे और पत्थर के उपकरणों का उपयोग शुरू किया। मध्य प्रदेश में इस काल के कई पुरातात्विक अवशेष मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र तत्कालीन सभ्यता का एक प्रमुख केंद्र था।
इस लेख में हम मध्य प्रदेश में ताम्रपाषाण काल के प्रमाणों, प्रमुख शैलाश्रयों एवं शैलचित्रों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
मध्य प्रदेश में ताम्रपाषाण काल के अवशेष
मध्य प्रदेश में ताम्रपाषाण काल के अवशेष मुख्यतः मालवा क्षेत्र के विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए हैं। इनमें प्रमुख स्थल निम्नलिखित हैं:
- नवदाटोली (धार और खंडवा के समीप)
- नागदा (उज्जैन जिले में)
- कायथा (उज्जैन के समीप)
- आवरा (रतलाम जिले में)
- एरण (सागर जिले में)
- बेसनगर (विदिशा जिले में)
इन स्थलों से प्राप्त अवशेषों में मृदभाण्ड (मिट्टी के बर्तन), धातु निर्मित उपकरण, पत्थर के औजार और अन्य उपयोगी वस्तुएँ शामिल हैं।
विशेष खोजें एवं उत्खनन
- 1869 ई. में जबलपुर में तांबे और टिन से निर्मित एक कुल्हाड़ी का पता चला। यह प्रमाण ताम्रपाषाण काल की उन्नत धातुकर्म तकनीक को दर्शाता है।
- 1970 में बालाघाट जिले के डोंगरिया क्षेत्र में ग्रामीणों को 424 तांबे के उपकरण और 102 चाँदी के आभूषण मिले, जो तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों का प्रमाण हैं।
मध्य प्रदेश के प्रमुख शैलाश्रय एवं शैलचित्र
मध्य प्रदेश अपने प्राचीन शैलचित्रों के लिए भी प्रसिद्ध है, जो प्रागैतिहासिक मानव के जीवन और उनकी कलात्मक अभिव्यक्तियों को दर्शाते हैं। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण शैलाश्रय और शैलचित्र स्थल हैं:
शैलाश्रय/शैलचित्र स्थल | स्थान (जिला) |
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लिखी छाज शैलाश्रय | करसा, मुरैना |
लिखी दंत शैलचित्र | चन्देरी, अशोकनगर |
दाता शैलचित्र | बिजावर, छतरपुर |
चुरनागंदी शैलचित्र | कानती, होशंगाबाद |
निशानगढ़ काजरी शैलचित्र | पचमढ़ी, होशंगाबाद |
वेलखंदार शैलचित्र | पचमढ़ी, होशंगाबाद |
हर्रापाल शैलचित्र | बोरी, होशंगाबाद |
झिंझारी शैलाश्रय | कटनी |
रानी माची शैलाश्रय | चितरंगी, सिंगरौली |
भीमबेटका: प्राचीन मानव सभ्यता का केंद्र
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका शैलाश्रय भारत के सबसे महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक स्थलों में से एक है। यहाँ लगभग 700 शैलाश्रय पाए गए हैं, जिनमें से 500 शैलाश्रयों में चित्रांकन किया गया है। इन शैलचित्रों में मुख्य रूप से लाल और सफेद रंग का उपयोग किया गया है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- चित्रों में शिकार, नृत्य, पशु-पक्षी, युद्ध एवं धार्मिक अनुष्ठान को दर्शाया गया है।
- इन चित्रों में प्रयुक्त रंग प्राकृतिक तत्वों से बनाए गए थे, जिनमें लाल रंग गेरू से और सफेद रंग चूने से प्राप्त किया गया था।
- इन शैलचित्रों को UNESCO विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
पचमढ़ी और पनारपानी के शैलाश्रय
- पचमढ़ी (होशंगाबाद जिला) में स्थित निशानगढ़ काजरी, वेलखंदार और हर्रापाल शैलचित्र महत्वपूर्ण स्थल हैं।
- पनारपानी गाँव के मामा-भांजा शैलाश्रय में लगभग 29 चित्र प्राप्त हुए हैं।
मध्य प्रदेश में ताम्रपाषाण काल की सभ्यता और उसकी शैलचित्र परंपरा भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भीमबेटका जैसे स्थल इस बात के प्रमाण हैं कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही कला, संस्कृति और मानव जीवन का विकास हुआ था।
विभिन्न पुरातात्विक खोजों से यह भी स्पष्ट होता है कि ताम्रपाषाण काल में यहाँ के लोग धातुकर्म, शिकार, कृषि और कला के क्षेत्र में उन्नत थे।
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