वाकाटक वंश (मध्य प्रदेश)
यह लेख वाकाटक वंश के उदय, शासनकाल, विस्तार, गुप्त वंश से संबंध, प्रमुख शासकों जैसे विंध्यशक्ति, प्रवरसेन प्रथम, रुद्रसेन प्रथम, प्रवरसेन द्वितीय आदि की उपलब्धियों और मध्य प्रदेश में उनके प्रभाव को दर्शाता है।
मध्य प्रदेश के इतिहास में वाकाटक वंश का विशेष स्थान रहा है। इस वंश की उत्पत्ति बुंदेलखण्ड क्षेत्र से हुई थी, और इसने दक्षिण भारत तक अपना प्रभुत्व स्थापित किया। पुराणों में इस वंश के संस्थापक विंध्यशक्ति (255-275 ई.) को विदिशा का शासक बताया गया है।
वाकाटक वंश की स्थापना एवं विस्तार
विंध्यशक्ति के पुत्र प्रवरसेन प्रथम (275-325 ई.) ने वाकाटक राज्य को शक्ति प्रदान की। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, जो उनकी सैन्य शक्ति और साम्राज्य की प्रतिष्ठा का प्रमाण था। उनके शासनकाल में वाकाटक साम्राज्य का विस्तार उत्तर में बुंदेलखण्ड से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक हुआ।
रुद्रसेन प्रथम और गुप्त वंश से संबंध
प्रवरसेन प्रथम के पौत्र रुद्रसेन प्रथम (340-365 ई.) के शासनकाल में वाकाटक वंश और अधिक शक्तिशाली बना। उन्होंने जबलपुर और बालाघाट जिलों को अपने अधीन किया। उनकी राजधानी नागपुर थी। रुद्रसेन प्रथम ने अपने पुत्र रुद्रसेन द्वितीय का विवाह गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती से किया, जिससे गुप्त और वाकाटक वंश के बीच मजबूत राजनीतिक संबंध बने।
प्रवरसेन द्वितीय और नरेन्द्रसेन का शासनकाल
प्रभावती के पुत्र प्रवरसेन द्वितीय ने अपनी राजधानी को प्रवरपुर स्थानांतरित किया। इस वंश के शिलालेख मध्य प्रदेश के बालाघाट, सिवनी और छिंदवाड़ा जिलों में पाए गए हैं, जो इस क्षेत्र में उनके प्रभाव को दर्शाते हैं।
नरेन्द्रसेन, जो प्रवरसेन द्वितीय के पुत्र थे, को बस्तर के नल राजाओं के कई आक्रमणों का सामना करना पड़ा। उन्होंने सफलतापूर्वक अपने राज्य की रक्षा की। उनके पुत्र पृथ्वीसेन द्वितीय के शासनकाल से संबंधित शिलालेख भी बालाघाट जिले से प्राप्त हुए हैं।
वाकाटक वंश का ऐतिहासिक महत्व
वाकाटक वंश ने मध्य प्रदेश के सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया। इस वंश का शासन कला, साहित्य और वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध था। इस वंश के संरक्षण में गुप्तकालीन कला और संस्कृत साहित्य का व्यापक विकास हुआ।
वाकाटक वंश मध्य प्रदेश के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस वंश के शासकों ने प्रशासन, कला और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में मिले इनके अवशेष और शिलालेख इस गौरवशाली इतिहास की गवाही देते हैं।
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